Ramayan4

* साधु चरित सुभ चरित कपासू। निरस बिसद गुनमय फल जासू॥
जो सहि दुख परछिद्र दुरावा। बंदनीय जेहिं जग जस पावा॥3॥
भावार्थ:-संतों का चरित्र कपास के चरित्र (जीवन) के समान शुभ है, जिसका फल नीरस, विशद और गुणमय होता है। (कपास की डोडी नीरस होती है, संत चरित्र में भी विषयासक्ति नहीं है, इससे वह भी नीरस है, कपास उज्ज्वल होता है, संत का हृदय भी अज्ञान और पाप रूपी अन्धकार से रहित होता है, इसलिए वह विशद है और कपास में गुण (तंतु) होते हैं, इसी प्रकार संत का चरित्र भी सद्गुणों का भंडार होता है, इसलिए वह गुणमय है।) (जैसे कपास का धागा सुई के किए हुए छेद को अपना तन देकर ढँक देता है, अथवा कपास जैसे लोढ़े जाने, काते जाने और बुने जाने का कष्ट सहकर भी वस्त्र के रूप में परिणत होकर दूसरों के गोपनीय स्थानों को ढँकता है, उसी प्रकार) संत स्वयं दुःख सहकर दूसरों के छिद्रों (दोषों) को ढँकता है, जिसके कारण उसने जगत में वंदनीय यश प्राप्त किया है॥3॥

20.The conduct of holy men is noble as the career of the cotton plant, the fruit whereof is tasteless, white and fibrous (even as the doings of saints yield results which are free from attachment, stainless and full of goodness).*  Even by suffering hardships ( in the form of ginning, spinning and weaving) the cotton covers other's holes (faults) and has thereby earned in the world a renown which is worthy of adoration.

*My understanding: Think seriously when you say this person is a saint and began following the saint like an animal without any consciousness. Does your saint has any of these qualities ?????????

इन पंक्तियों में कवि तुलसीदास जी ने जिस करुणा से कपास जैसे चीज के जीवन का वर्णन किया है वो अद्भुत है।जब 20वें दोहे में ही कवी इतने करुणामयी हो सकते हैं( कवी संत के चरित्र का वर्णन कर रहे हैं लेकिन मुझे इस दोहे से करुणा का एहसास हुआ। ) , तो पूरी रामचरितमानस के बाद क्या होगा। जय श्री राम।

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