पैसा दुनिया की सबसे बड़ी "चीज" है।

पैसा दुनिया की सबसे बड़ी चीज है।

मैंने पैसा नहीं कमाया लेकिन इज्जत बहुत बहुत है मेरा समाज में।पैसे से आप इज्जत नहीं खरीद सकते। रुपया से माँ बाप खरीद सकते हो क्या।पैसे से खुशी नहीं आती, वगैरह वगैरह....
आप सभी लोगों ने चौक चौराहों पर ,घर परिवार में इस तरह की बाते सुनी होगी।आपको शायद लगता होगा की यह सच है। लेकिन ऐसा वास्तविकता में नहीं है।
यहाँ पर हमलोग यह भूल जाते हैं कि पैसा एक "चीज़" है, यानि कि वस्तू ।वस्तू के बदले में हम वस्तू ही खरीद सकते हैं, विचारों को नहीं।
इज्जत, खुसी ,माँ पिता, प्रेम,भक्ति,भगवान, राम,कृष्णा, शिव, अल्लाह , ये सारे विचार हैं। क्योंकि बेईमान आदमी को पैसे की परवाह है, इज्जत की नहीं।पैसे के पीछे भागने वालों को सुख के संसाधन जुटाने की भूख है, जिस चक्कर में वो खुसी का एहसास भूल जाते हैं और ना ही उन्हे खुशी की चाहत रहती है। आज के जमाने में ऐसी कलयुगी mom dad हैं, जिन्हें अपने बच्चों की हत्या करने, यहाँ तक की इज्जत लूटने में भी लज्जा नहीं आती।मैं उन लोगों के लिए माँ पिता जैसे पवित्र शब्दों का  इस्तेमाल भी नहीं करना चाहता। यह तो एक प्यारा विचार है।जन्म देने से औरत माँ नहीं बनती है।माँ बनती है ममता से,नहीं तो वो जंगली जानवर है।पैसे से ना हमे भक्ति मिल सकती हैं तो फिर भगवान का तो प्रश्न ही नहीं आता। यह तो आस्था है। राम कृष्ण परमहंस ने कहा था "श्रद्धा को आँखे नहीं होती।" Faith has got no eyes.
परंतु पैसे को आँखे होती है।वह हमारी आँखों से देखता है कि पैसे के बदले हमे वापस कौन सी "चीज" मिल रही है।चाहे पैसा मंदिर मस्जिद मे दान के लिए क्यों ना हो, हम यह सोचते हैं कि हमे क्या मिलेगा। खैर दान तो खुद ही में एक hypothetical word है, भगवान का ही दिया हुआ पैसा उसे हम दान दे रहे हैं।हँसने लायक बात है।

अब आपलोग सोचेंगे यदि 'पैसे' से कुछ मिल ही नहीं सकता तो पैसा दुनिया की सबसे बड़ी चीज कैसे हुई। इसका उत्तर यही है कि पैसे से आप चीजों को खरीद सकते हैं, विचारों को नहीं।

आप 'इज्जत' नहीं खरीद सकते ,लेकिन बड़ी गाड़ी खरीद कर अपने आप को बड़ा महसूस कर सकते हैं।और कुछ दिखावे के पुजारी आपको इज्जत दे ही देंगे।
'खुसी' नहीं खरीदी जा सकती, परंतु किसी भूखे आदमी को भोजन के अलावा कोई 'चीज' खुसी दे सकती है क्या और अन्न मिलता है मुद्रा से। उस भूखे आदमी के लिए पैसे से बड़ी कोई 'चीज' कैसे हो सकती है।
माता पिता बाजार से नहीं खरीदे जा सकते, लेकिन उसी बजार से आप उनके लिए कपड़े खरीद कर उन्हें असीम आनंद दे सकते हैं।बच्चे जब माँ को एक छोटी सी चीज भी ला कर देते हैं तो वो बहुत खुश हो जाती है।और इस खुसी के बदले में आपको चाहिये सिर्फ एक चीज, "पैसा"।

पैसे से प्रेम को खरीदने के बारे में सोचना भी पाप है। प्रेम सबसे पवित्र विचार है।प्रेम हिं भक्ति को जन्म देता है। प्यार में एक जादूई एहसास है, जो आपको प्रफुल्लित कर देता है। और ध्यान रखें यदि प्रेम आपको खुशि नहीं दे रहा हो (वो प्रेम माता पिता, प्रेमी प्रेमिका, भगवान किसी से हो), तो आप गलत रास्ते पर हैं।

'भक्ति' के बारे में एक पुरानी कहावत है,"भूखे भजन न होई गोपाला"। अर्थात भूख में व्यक्ति को सिर्फ भोजन की याद आती है भगवान की नहीं। भगवान को वो याद भी करता है तो सिर्फ भोजन के लिये। हे भगवान मुझे पैसे मिल जाये, ताकि मैं अपने परिवार का पेट भर सकूं।तो फिर भगवान से भक्ति के बारे में आप कैसे सोचेंगे।भगवान को क्या दे पाएंगे आप।प्रार्थना का अर्थ मांगना नहीं देना होता है।रजनीश(ओशो) ने कहा है कि मन से बड़ा कोई भिखारी नहीं होता। मन का मतलब ही है मांगना।दो ,दो और दो।इसलिये प्रार्थना देने के लिए होता है, क्योंकि भगवान तो देता हीं रहता है, हमी मुर्ख कुछ ले नहीं पाते, फिर दोष देते हैं भगवान को।हम तो वर्तमान छोड़ कर पता नहीं किन बेकार के ख्यालों में डूबे रहते हैं।भगवान तो इसी छन दे रहे हैं और हम सोच रहे हैं कि भविष्य में हम पर कृपा होगी।हमे बस वर्तमान मे रहते हुए भगवान पर आस्था रखनी है।कहने में आसान वाक्य है, परंतु ये दुनिया का सबसे कठिन कार्य है।आस्था की डोर बहुत कच्ची और छनभंगुर होती है।वर्तमान में रहने का ही नाम मोक्ष है।भक्ति के लिए वर्तमान में रहने की आवश्यकता है ,पैसे की नहीं।पैसे तो चल कर के आपके पास आएंगे, आप सिर्फ भगवान पर अंधविश्वास कर कर्म कीजिये।

जय श्री राम।
To be continued.........☺️


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